राजपूतों की ऐसी कहानी है , कि राजपूत ही राजपूत कि निशानी ही
हम जब आये तो तुमको एहसास था , कि कोई एक शेर मेरे पास था
हम गरम खून के उबाल हैं , प्यासी नदियों की चाल हैं ,
हमारी गर्जना विन्ध्य पर्वतों से टकराती है और हिमालय की चोटी तक जाती है
हम थक कर बैठेने वाले रड बांकुर नहीं ठाकुर हैं ....
...गर्व है हमें जिस माँ के पूत हैं , जीतो क्यूंकि हम राजपूत है